चोटी की पकड़–13
हाँ।"
" जगह आप लोग देंगे, आदमी हम।
आप में जो कलकत्ते के रहने वाले हैं, वे अपनी कोठियों में जगह नहीं दे सकते।
उन्हें हम करोड़ और भाड़ी कोठियों में काम करेंगे।"
"हां।" राजेंद्रप्रताप को विश्वास था कि वे दो-चार को क्या, बीस आदमियों को छिपा सकते हैं।
गढ़ के अंदर पुलिस के आने तक वे आदमी को बाहर निकाल दिया जा सकता है, माल गहरे तालाब में फेंक दिया जा सकता है।
पूर्वपुरुषों से जमींदारों की दुस्साहसिकता की जो बातें उन्होंने सुनी हैं और खुद कर चुके हैं, उनके सामने ये संगण्य हैं।
"सारा देश साथ है।" बैरिस्टर ने कहा, "घबरायेगा नहीं। हमारा कैच छूटेगा तो आपकी पर ही कुल जिम्मेवारी होगी।
आपको पकड़ा नहीं जाएगा। कोठी में भी पकड़ा जाएगा तो उनका यही कहना होगा कि वे एकांत देखकर अपनी इच्छा से गए थे।"
राजा राजेंद्रप्रताप को विश्वास का बल मिला। बैरिस्टर ने कहा, "किसी तरह की अनहोनी होती है तो आप उन्हें जल्द ही सूचित कर दें।"
राजा साहब ने सम्मति दी। बैरिस्टर ने कहा, "जो आदमी वहाँ जाएगा, वह आज से चौथे दिन तारकनाथ का आदमी देशीकरण करेगा।
उसका नाम प्रभाकर है। उसके साथ तीन आदमी और होंगे।
सामान की व्यवस्था की हुई रहेगी; भीतर ले जाने, ले जाने और भोजन पान।
का अख्तियार आप बताएं, साथ में इस तरह भेद न खुले, बहुत भरोसेमंद व्यक्ति काम में रहते हैं जिनके जीवन की चौकी आपके हाथ में हो। समझते हैं?"
"हां, संबंध हमारा तो आप सहज है।" राजा साहब मुस्कराये। बैरिस्टर साहब ने कुछ देर तक ऐसी ही बातचीत की, फिर बिदा हुए।